बहुत से सज्जन महिलाओं के घर का काम करने और पुरुषों के नौकरी करने को उनका स्वाभाविक गुण बताते हुए कहते हैं ... खाना पकाना , कपडे सिलना ,साफ़ सफाई करना आदि स्त्रियों के प्राकृतिक गुण हैं ! घर में खाना बनाना , टॉयलेट साफ़ करना , बच्चों के फटे कपडे सिलना आपको पुरुषोचित नहीं लगता है !
जी बड़ी अच्छी बात है ..सहमत हुए ,पर एक प्रश्न का जवाब दे दीजिये ज़रा " फिर सारे होटल ,ढाबे ,रेस्तौरेंट पर पुरुषों ने क्यों कब्ज़ा जमा रखा है ? हर शहर ,गली ,मोहल्ले में क्यों पुरुष दर्जी का काम कर रहे हैं ? क्यों चूड़ियों की दूकान खोलकर हाथों में चूड़ियाँ पहना रहे हैं ? अगर ये सारे काम पुरुषोचित नहीं हैं तो छोड़ क्यों नहीं देते इन्हें ?
दरअसल ये आपकी सत्ता का प्रश्न है ,और कुछ नहीं ! आपको घर के बाहर सब प्राकृतिक और स्वाभाविक लगता है , वही काम आपको घर के भीतर अस्वाभाविक लगने लगते हैं !
आपको स्त्री आर्थिक रूप से आप पर निर्भर ही चाहिए! और उस पर भी अगर आपने उस पर एहसान कर उससे नौकरी करवा ली तब भी घर के काम तो आप उसी से करायेंगे ... कभी उसे चने के झाड पर चढ़ाकर कि घर तो बस वही संभाल सकती है , कभी उसके सामने बच्चा बनकर और कभी बेचारा बनकर ! यह सब काम न आये तो आपकी शारीरिक शक्ति तो है ही !!!!
जी बड़ी अच्छी बात है ..सहमत हुए ,पर एक प्रश्न का जवाब दे दीजिये ज़रा " फिर सारे होटल ,ढाबे ,रेस्तौरेंट पर पुरुषों ने क्यों कब्ज़ा जमा रखा है ? हर शहर ,गली ,मोहल्ले में क्यों पुरुष दर्जी का काम कर रहे हैं ? क्यों चूड़ियों की दूकान खोलकर हाथों में चूड़ियाँ पहना रहे हैं ? अगर ये सारे काम पुरुषोचित नहीं हैं तो छोड़ क्यों नहीं देते इन्हें ?
दरअसल ये आपकी सत्ता का प्रश्न है ,और कुछ नहीं ! आपको घर के बाहर सब प्राकृतिक और स्वाभाविक लगता है , वही काम आपको घर के भीतर अस्वाभाविक लगने लगते हैं !
आपको स्त्री आर्थिक रूप से आप पर निर्भर ही चाहिए! और उस पर भी अगर आपने उस पर एहसान कर उससे नौकरी करवा ली तब भी घर के काम तो आप उसी से करायेंगे ... कभी उसे चने के झाड पर चढ़ाकर कि घर तो बस वही संभाल सकती है , कभी उसके सामने बच्चा बनकर और कभी बेचारा बनकर ! यह सब काम न आये तो आपकी शारीरिक शक्ति तो है ही !!!!
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