आज ऑफिस में एक बाबू ने बताया कि उसकी पत्नी भी बाबू थी ,दो महीने पहले उसने स्वैक्षिक सेवानिवृत्ति ले ली !
मैंने पूछा " क्यों ले ली "
उसने बताया " माँ की म्रत्यु के बाद पिताजी की देखभाल करने के लिए कोई तो चाहिए था , इसलिए ले ली "
मैंने कहा " आप भी तो ले सकते थे ...पत्नी ने ही क्यों ली ?"
इस पर उसने इतना बड़ा मुंह फाड़कर हैरत से मुझे देखा मानो मैंने कोई बहुत बड़े पागलपन की बात कर दी हो ..
. बोला ... " अगर पति,पत्नी में से किसी एक को नौकरी छोड़ना हो तो पत्नी ही तो छोड़ेगी , पति कैसे छोड़ सकता है ?
मुझे विश्वास है कि अगर उसकी पत्नी से मैं ये सवाल पूछती तो वो भी इतने ही हैरत से मुझे देखती !
पत्नी कमाए , पति घर पर पिताजी की देखभाल करे .... हमारी पुरुषवादी मानसिकता इसकी इजाज़त नहीं देती ! गलती न पति की है , न पत्नी की ! जो बचपन से देखा ,समझा है उसके हिसाब से वे सही हैं !
मैंने पूछा " क्यों ले ली "
उसने बताया " माँ की म्रत्यु के बाद पिताजी की देखभाल करने के लिए कोई तो चाहिए था , इसलिए ले ली "
मैंने कहा " आप भी तो ले सकते थे ...पत्नी ने ही क्यों ली ?"
इस पर उसने इतना बड़ा मुंह फाड़कर हैरत से मुझे देखा मानो मैंने कोई बहुत बड़े पागलपन की बात कर दी हो ..
. बोला ... " अगर पति,पत्नी में से किसी एक को नौकरी छोड़ना हो तो पत्नी ही तो छोड़ेगी , पति कैसे छोड़ सकता है ?
मुझे विश्वास है कि अगर उसकी पत्नी से मैं ये सवाल पूछती तो वो भी इतने ही हैरत से मुझे देखती !
पत्नी कमाए , पति घर पर पिताजी की देखभाल करे .... हमारी पुरुषवादी मानसिकता इसकी इजाज़त नहीं देती ! गलती न पति की है , न पत्नी की ! जो बचपन से देखा ,समझा है उसके हिसाब से वे सही हैं !
मगर सवाल ये है कि देखे, सीखे हुए को हम अपने बुद्धि ,विवेक और तर्क की कसौटी पर कसना और उनमे बदलाव लाना कब सीखेंगे ?
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