जल्दी तैयार हो जाओ ... नुक्कड़ वाली आंटी के घर खाना खाने जाना है !
नईई मम्मी ..इ इत्ती सुबह से खाना ? हम नई जा रहे ! और इन आंटी के घर तो बिलकुल नई जायेंगे! बहुत ही सड़ियल खाना बनती हैं ! बिना नमक के आटे की लिजलिजी सी पूड़ी , बिना घुले चावल की खीर और ठंडी आलू की टिल्ल सब्जी ! हमसे नई खायी जाती ! ऊपर से कन्या भोज के बाद केवल दस पैसे देती हैं !
ज्यादा बातें मत करो ! जाना है माने जाना है ! और इसके बाद फलानी आंटी, ढिमाकी आंटी के यहाँ जाना उसके बाद फिर वो वाली आंटी और फिर उनके पड़ोस वाली आंटी के घर भी जाना है ! अभी सात बजे से शुरू करोगी तब बारह बजे तक सबके घर निपट पायेंगे !
बेचारी कन्याएँ निकल पडतीं नवरात्रि की सालाना जंग पर ! सबसे खराब खाने से शुरुआत कर यहाँ वहाँ विभिन्न प्रकार का खाना ( यहाँ भिन्नता खाने की क्वालिटी में हैं , मेनू सभी जगह कमोबेश समान है ) गले से उतारते हुए लास्ट खाना उन आंटी के घर का रखतीं जहां का खाना सबसे स्वादिष्ट होता था ! जिन घरों में टी .वी . देखने जाने पर या घर के अन्दर बॉल चले जाने पर या फूल तोड़ने पर साल भर कर्कश ध्वनि में कटु शब्द सुनने की आदत थी , उन घरों में आज श्रद्धा पूर्वक चरण छुए जाते , माथे पर टीका लगाया जाता ! मनुहार कर करके भोजन कराया जाता और ना ना करते भी दो पूड़ी और थाली में पटक दी जातीं !ये बताने पर भी कि " आंटी हम सात घरों में खाना खाकर आये हैं , एक पूड़ी से ज्यादा न खा पायेंगे " इन राक्षसनियों को जरा भी तरस ना आता! इन्हें अपना बनाया सामान देवी जी के गले में उड़ेलने की जल्दी मची रहती ! कन्याएं साक्षात देवी का स्वरुप नज़र आतीं उन आंटियों को ! अगले दिन से कन्याएं पानी के लिए भी न पूछी जातीं ! कभी गलती से खेलते खेलते कह दो " आंटी ..प्यास लगी है " तो जवाब मिलता " बेटा , हम ज़रा बाहर जा रहे थे , अपने घर ही पी लो "
कन्याएं दस घरों में भोजन रुपी राक्षस का जुल्म सहकर लगभग पांच रुपये कमाकर लस्त पस्त घर लौटतीं ! और घर आते ही पलंग पर चारों खाने चित्त हो जातीं !और शुरू होती इस भयानक भोजन को पचाने की कठिन क्रिया ! आंतें जी भरकर कन्याओं को कोसतीं ! शाम को मम्मी से खिचड़ी या दाल चावल बनाने की गुहार लगती ! और फिर अगली नवरात्रि तक ये कन्याएं देवी से दुबारा साधारण छोकरियाँ बन जातीं जो डांटने पीटने के काम आतीं !!!